चंद्रयान-3 की तीसरी कक्षा बदली, जानें कहां पहुंचा इसरो का चंद्र मिशन? Moon mission india 2023
चंद्रयान-2 का अनुवर्ती मिशन है चंद्रयान-3, जो चंद्र पर सुरक्षित लैंडिंग और घूमने की संपूर्ण क्षमता रखता है । इसमें लैंडर और रोवर विन्यास शामिल है । इसे LVM3 के द्वारा SDSC SHAR, श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया है । प्रोपल्शन module लैंडर और रोवर विन्यास को 100 किमी चंद्र कक्षा तक ले जाएगा ।
चंद्रयान-3 में किया किया शमिल है ?
1. एक स्वदेशी लैंडर मॉड्यूल (LM)
2. प्रोपल्शन मॉड्यूल (PM) और
3. रोवर
जिसका Aim अंतर ग्रहीय मिशनों के लिए आवश्यक नई प्रौद्योगिकियों को विकसित करना और प्रदर्शित करना है । लैंडर में एक निर्दिष्ट चंद्र स्थल पर सॉफ्ट लैंडिंग करने और रोवर को तैनात करने की क्षमता होगी जो अपनी गतिशीलता के दौरान चंद्र सतह का इन-सीटू रासायनिक विश्लेषण करेगा। वैज्ञानिक पेलोड के जरिए लैंडर और रोवर के पास चंद्र सतह पर प्रयोग किया जाएगा । पीएम का मुख्य कार्य LM को लॉन्च वाहन इंजेक्शन से अंतिम चंद्र 100 किमी गोलाकार ध्रुवीय कक्षा तक ले जाना और LM को पीएम से अलग करना है । इसके अलावा, प्रोपल्शन module में मूल्यवर्धन के रूप में एक वैज्ञानिक पेलोड भी है, जो lander module के अलग होने पर संचालित किया जाएगा।
ISRO ने 18 जुलाई 2023 को दोपहर 2 से 3 बजे के बीच चंद्रयान-3 की तृतीय कक्षा को बदल दिया था । चंद्रयान-3 की पृथ्वी की सतह से लंबी दूरी यानी अपोजी में बदलाव किए गए हैं । अगला बदलाव 20 जुलाई को इसी समय होगा । ISRO का लक्ष्य चंद्रयान-3 को धरती से एक लाख किलोमीटर की दूरी पर ले जाना ।
चंद्रयान-3 फिलहाल अंतरिक्ष में 226X41,602 किमी की कक्षा में पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगा रहा है।
ISRO ने 18 जुलाई 2023 को दोपहर 2 से 3 बजे के बीच चंद्रयान-3 का तीसरा orbit मैन्युवर कर दिया था । उसके बाद ISRO ने खुलासा किया था चंद्रयान-3 की तीसरी कक्षा सफलतापूर्वक बदल दी गई है । अगली कक्षा पैंतरेबाज़ी 20 जुलाई 2023 को दोपहर 2 से 3 बजे तक ही होगी । अभितक इसरो ने यह नहीं खुलासा किया है कि दूरी में कितना बदलाव किया गया है । लेकिन अपोजी में बदलाव हुआ है ।
इसके बाद चौथे और पांचवें ऑर्बिट मैन्यूवर में एपोगी को भी बदला जाएगा । यानि पृथ्वी की सतह से अधिक दूरी । चंद्रयान-3 को 31 जुलाई तक एक लाख किलोमीटर की दूरी तक पहुंचाने का Aim है ISRO का । तीसरी कक्षा की चाल से पहले, चंद्रयान 226 किमी की उपभू और 41,762 किमी की अपभू के साथ एक अण्डाकार कक्षा में घूम रहा है। इस कक्षा संचालन में 41,762 किमी की दूरी बड़ाई गई है।
फिलहाल इसरो ने यह खुलासा नहीं किया है कि इसके लिए इंजन को कितनी देर तक चालू किया गया था। लेकिन जल्द ही इसका पता चल जाएगा. इसके बाद चंद्रयान-3 को लूनर ट्रांसफर ट्रैजेक्टरी यानी लंबी दूरी की कक्षा में धकेल दिया जाएगा। वह पांच दिनों तक इस कक्षा में भ्रमण करेगा । अगस्त 5 और 6 तारीख को चंद्रयान-3 चंद्रमा की कक्षा में entry के लिए ready हो जाएगा ।
इसके बाद चंद्रयान 3 का प्रोपल्शन सिस्टम शुरू किया जाएगा. प्रोपोल्सन सिस्टम को चंद्रमा की ऑर्बिट की ओर धकेला जाएगा। पानी चंद्रमा को 100X100 किलोमीटर की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया जाएगा । 17 अगस्त 2023 को प्रोपल्शन सिस्टम lander रोवर से अलग कराया जाएगा । Module को अलग कराने के बाद ही लेंडर और रोवर को चंद्रमा की 100X30 किलोमीटर की कक्षा में प्रवेश कराया जाएगा।
चंद्रयान-3 को चंद्रमा की 100x30 किमी की कक्षा में लाने के लिए इसे डीबूस्ट करना होगा। यानी इसकी स्पीड कम करनी होगी । इसके लिए चंद्रयान-3 जिस दिशा में गति कर रहा है, उस दिशा को उल्टा करना पड़ेगा । यह कार्य 23 अगस्त को किया जायेगा । इसरो वैज्ञानिकों के लिए ये काम मुश्किल होगा । यहीं से landing की शुरुआत होगी ।
विक्रम लैंडर के पैरों की ताकत बड़ाकर इसे और मजबूत कि गई है । नए सेंसर लगाए गए हैं । नया सोलर पैनल लगाया गया है । पिछली बार चंद्रयान-2 की landing area का क्षेत्रफल 500 मीटर X 500 मीटर तय किया गया था । इसरो का मकसद विक्रम लैंडर को बीच में उतारना चाहता था । जिसके कारण कुछ सीमाएँ थीं। इस बार लैंडिंग का क्षेत्रफल 4 किमी x 2.5 किमी रखा गया है । यानी चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर को बड़े इलाके में उतारा जा सकता है ।
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